फारूक अब्बास। दोस्तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसी भारतीय महिला के बारें में जिसे आज गूगल ने भी अपने डूडल के जरिये श्रध्दांजलि दी है।...
फारूक अब्बास। दोस्तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसी भारतीय महिला के बारें में जिसे आज गूगल ने भी अपने डूडल के जरिये श्रध्दांजलि दी है। रूखमाबाई भारत और ब्रिटेन की पहली महिला डाक्टर थीं। इनका जन्म 22 नबम्बर 1884 को हुआ। इनके पिता का नाम जर्नाधन पांडूरंग और माता का नाम जयंतीबाई था। रूखमाबाई बढई जाति से थीं। रूखमाबाई ने अपनी पढाई उस बिट्रिश काल में पूरी की जब महिला को उनके मामूली अधिकारों से तक वंचित रखा जाता था। उन्होने हिन्दू मैरिज व्यवस्था के लिये भी एक लम्बी लडाई मिली। आखिर में उन्हे इस लडाई में सफलता हासिल हुई।
रूखमाबाई की शादी महज 11 साल में ही दादाजी भिकाजी के साथ कर दी गई। रूखमाबाई इस शादी के खिलाफ थी। उन्होने पति के साथ रहने से इंकार कर दिया। जिसके बाद उनके पति दादाजी कोर्ट चले गये। कोर्ट ने रूखमाबाई से कहा कि या तो वे अपने पति के साथ रहे अन्यथा उन्हे सजा के तौर पर जेल भेज दिया जायेगा। इस पर रूखमाबाई ने कहा कि जेल में रहने को तैयार हैं। इसके बाद उन्होने हिन्दू मैरिज व्यवस्था को लेकर लडाई लडी और सन 1955 में ये प्रस्ताव पारित किया गया कि विवाह के बन्धन में बंधे रहने के लिये पति-पत्नी दोनो का सहमत होना जरूरी है। रूखमाबाई के इस कदम से वे कई अखबारों की सुर्खियों मे रही और लोकप्रिय हो गईं। एक लेख में उन्होने डाॅक्टर बननें की इच्छा जताई। इस पर लोगों फण्ड इकटठा करके इंग्लैण्ड भेजा और लंदन स्कूल आॅफ मेडिसिन से उन्होने पढाई की। डाक्टर बननें के बाद उन्होने राजकोट के एक महिला अस्पताल में अपनी सेवाऐं दी। इसके अलावा बे बाल विवाह और महिला के मुददों को लेकर हमेशा आवाजा उठाती रहीं। 25 सितम्बर 1955 में इनकी मृत्यु हो गयी।

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